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दृष्टिकोण (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

Sunday, 15 March 2009

भूल चुके हैं आज सब,


ऊँचे दृष्टिकोण,


दृष्टि तो अब खो गयी,


शेष रह गया कोण।


शेष रह गया कोण,


स्वार्थ में सब हैं अन्धे,


सब रखते यह चाह,


मात्र ऊँचे हो धन्घे।


कह मयंक उपवन में,


सिर्फ बबूल उगे हैं,


सभी पुरातन आदर्शो को,


भूल चुके हैं।

5 comments:

हरकीरत ' हीर' 22 March 2009 at 23:43  

कह मयंक उपवन में,
सिर्फ बबूल उगे हैं,
सभी पुरातन आदर्शो को,
भूल चुके हैं।

bhot sundar...!!

avanti singh 23 November 2011 at 06:44  

कह मयंक उपवन में,


सिर्फ बबूल उगे हैं,


सभी पुरातन आदर्शो को,


भूल चुके हैं। वाह! क्या बात है , शास्त्री जी ....

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