दृष्टिकोण (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
Sunday 15 March 2009
भूल चुके हैं आज सब,
ऊँचे दृष्टिकोण,
दृष्टि तो अब खो गयी,
शेष रह गया कोण।
शेष रह गया कोण,
स्वार्थ में सब हैं अन्धे,
सब रखते यह चाह,
मात्र ऊँचे हो धन्घे।
कह मयंक उपवन में,
सिर्फ बबूल उगे हैं,
सभी पुरातन आदर्शो को,
भूल चुके हैं।
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