"!! मुक्तक !!" (डॉ.इन्द्र देव माहर)
Saturday, 31 October 2009
!! मुक्तक !!
जीवन के झंझावातों में,
अब तक इतना उलझा था मैं,
प्रीत-रीत मर्यादाओं के,
बन्धन ने इतना घेरा था!
जीवन के पग-पग पर मैंने,
सारे जग को अपना जाना,
आँख खुली तो बोध हुआ,
दुनिया मे सब तेरा-मेरा था!!
9 comments:
waah!adbhut likha hai aur sach likha hai.
सही बात है - तेरा मेरा में ही तो दुनिया चलती है।
ब्लॉग लेखन की दुनिया में आपका स्वागत है!जितना लिखें उससे ज्यादा पढें भी!मेरी शुभकामनायें आपके साथ है..
दो बहिनों की फोटो अच्छी लगी!मेरा आर्शीवाद!!!
चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
आपका स्वागत है!मेरी शुभकामनायें आपके साथ है
डा. इंद्र देव माहर ,चलिए आपकी आँखें खुली तो सही . यह तो जीवन की सच्चाई है .इससे ही पार पाना है .अच्छा लिखा है .
हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें तथा अपने सुन्दर
विचारों से उत्साहवर्धन करें
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