"तब और अब" (श्रीमती रजनी माहर)
Tuesday, 26 January 2010
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अकविता
"चापलूसी की अदा हमे आती नही" (रजनी माहर)
Friday, 15 January 2010
चापलूसी की अदा हमे आती नही.
धोखे हम ने किसी को दिए ही नही.
आईना पर परदा डालने की
अदा हमे आती नही.
उनको जो आयना दिखलाया हमने
देख अस्क अपना
नफ़रत करने हमसे लगे
झूठ पर परदा डालने की
अदा हमें आती नही.
सच जो उनसे कहा हमने
नफ़रत करने हमसे लगे
पाप करने की अदा हमें आती नही.
पुण्य के रास्ते की जो बात की
नफ़रत करने वो हमसे लगे.
बनावट की अदा हमं आती नही
बग़ावत की राह हमें भाती नही .
आँख उनकी खुली व्यथित हो गये बस
नफ़रत हमसे वो करने लगे.
हिंसा की अदा हमें आती नही
जीव हत्या की राह हमें भाती नही
गाँधी बाबा के वचनो की जो बात की
नफ़रत बस हमसे वो करने लगे.
आत्मसम्मान उनका है प्यारा हमें .
चाह स्वाभिमान अपना भी कायम रहे.
सबका सम्मान करने की जो बात की
बस नफ़रत हमसे वो करने लगे
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