श्रीमती रजनी के अन्तर्मन के कुछ भावः
Monday, 23 February 2009
जिन्दगी
जिन्दगी धूप ही धूप है,
छाँव का नाम-औ-निशां नही।
जिन्दगी एक पतझड़ है,
बसन्त का नाम-औ-निशां नही।
जिन्दगी सेज है काँटों की,
जहाँ फूलों का नाम-औ-निशां नही।
जिन्दगी आँसुओं का सैलाब है,
यहाँ मुस्कान का नाम-औ-निशां नही।
जिन्दगी निराशा का नाम है,
यहाँ आशा का नाम-औ-निशां नही।
जिन्दगी एक नफरत है,
यहाँ प्यार का नाम-औ-निशां
जिन्दगी एक नदिया है,
जहाँ साहिल का नाम-औ-निशां नही।
5 comments:
आशा और निराशा के क्षण,
कदम-कदम पर मिलते हैं।
काँटो की पहरेदारी में,
ही गुलाब खिलते हैं।
जिन्दगी के कितने ही रूप हैं, देखते जाइए, कविता पढते जाइए।
zindagi ke rang kai re sathi re........apne rang to dikhayegi hi.
rahi manava dukh ki chinta kyu satati hai dukh to apna sathi hai.
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