(श्रीमती रजनी माहर)
तब
रुपये किलो था आटा, अब है कितना घाटा, नानी संग जाती बाजार, नौ रुपये किलो था अनार, एक रुपये में दो किलो ज्वार, गेहूँ चावल की भरमार, कम मिलती थी बहुत पगार, कभी न होते थे बीमार, तन चुस्त थे मन दुरुस्त थे, थोड़े में सब लोग मस्त थे, दूध-दही सब कुछ था शुद्ध वातावरण
प्रदूषण-मुक्त
| अब
टमाटर गुस्से से लाल हैं जेबें खस्ता हाल हैं, गरीब का थाली में- दाल है ना भात है, नकली सामान की- भरमार है, मिठाई से मिठास गायब है, लाली से पुते हुए लब हैं, मँहगाई की चौतरफा मार है, पीजिए हुजूर! यूरिया के दूध वाली- चाय तैयार है!!
(श्रीमती रजनी माहर) |
3 comments:
गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥
बहुत सटीक!
very good.
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