"!! मुक्तक !!" (डॉ.इन्द्र देव माहर)
Saturday, 31 October 2009
!! मुक्तक !!
जीवन के झंझावातों में,
अब तक इतना उलझा था मैं,
प्रीत-रीत मर्यादाओं के,
बन्धन ने इतना घेरा था!
जीवन के पग-पग पर मैंने,
सारे जग को अपना जाना,
आँख खुली तो बोध हुआ,
दुनिया मे सब तेरा-मेरा था!!
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