"बैठकर के धूप में मस्ताइए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
Tuesday, 18 December 2012
कव्वाली
आ गई हैं सर्दियाँ सुस्ताइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
पड़ गई हैं छुट्टियाँ स्कूल की.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हायिए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
रात लम्बी, दिन हुए छोटे बहुत,
अब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
पड़ गई हैं छुट्टियाँ स्कूल की.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हायिए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
रात लम्बी, दिन हुए छोटे बहुत,
अब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।